अकेला कदम , दो कदम
ढूँढा पत्थर में परछाई
दूरी हुई कभी नहीं कम,
कभी थी सिर्फ़ तन्हाई .
मिली तो थी साथी,
न जाने कहाँ पीछे छूट गई
शायद पुकारी भी थी
एहसास ही नही हुआ.
रफ़्तार काफ़ी बढ़ गई
मानो अपनी गाड़ी में सवार
भागा चला जा रहा
किसी अनजान मंजिल की ओर.
थमा क्षण भर के लिए,
मधुशाला में मदिरापान की इच्छा,
खाने लगी किसी की याद
वापिस पुष्प को छूने की अभिलाषा.
क्षितिज पर अपनी लालिमा,
छोड़ते हुए डूबता सूरज को देखा,
सुशील चंद्रमा को इशारा करते देखा,
नखरीली अदाएं बिखेरने को तैयार देखा.
संध्या अपने जवानी पर
रात्रि कभी लगे करीब , कभी दूर इतना
शायद मंजिल पर होगा सवेरा,
शायद मिलेगा कोई नया नज़ारा.
4 comments:
waah bahut achaa tha.. :)
mai to lagta hai hindi leekhna hi bhool gai hoon !! :(
uff i again forgot or got lost in the words...the snap is very nice..
nostalgic feeling aiii mujhe no idea why!
hindi likhna bhool gayi ? nahi nahi I use Google Indic translation.. type in English.. and when u press space .. it converts to hindi .. and then I just do copy paste here! :)
Glad you liked the pic. :)
Nice post. Stumbled upon upon your blog. Pretty good you are with camera. Must say.
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